अब नहीं चलेगा फर्जीवाड़ा! वोटर ID और आधार लिंक करने पर चुनाव आयोग का बड़ा धमाका

चुनाव आयोग ने लिया ऐतिहासिक फैसला—आधार और वोटर ID की लिंकिंग से खत्म होंगे डुप्लीकेट नाम और फर्जी वोटिंग, जानें इस कदम के पीछे की पूरी रणनीति और उससे जुड़े विवाद।

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By Nishant
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वोटर आईडी और आधार कार्ड को लिंक करने की प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग ने बड़ा फैसला लिया है। इस निर्णय का उद्देश्य चुनावों में होने वाले फर्जीवाड़े को रोकना और मतदाता सूची को शुद्ध करना है। Election Commission का मानना है कि आधार कार्ड से वोटर ID जोड़ने से Duplicate Voter की पहचान आसानी से हो सकेगी और मतदान प्रणाली अधिक पारदर्शी बनेगी।

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फर्जी वोटिंग पर लगेगा पूर्ण विराम

भारत में हर चुनाव के दौरान फर्जी वोटिंग और एक ही व्यक्ति के कई स्थानों पर नाम दर्ज होने जैसी समस्याएं सामने आती रही हैं। इस नई व्यवस्था से चुनाव आयोग ऐसे मामलों को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है। आधार लिंकिंग से Electoral Roll में मौजूद डुप्लीकेट नाम हटाए जा सकेंगे जिससे निष्पक्षता बनी रहेगी।

कानूनी प्रावधानों के तहत हो रहा है काम

वोटर आईडी को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धाराओं 23(4), 23(5) और 23(6) के अंतर्गत की जा रही है। इस कार्य के लिए तकनीकी सलाह और डेटा सुरक्षा से संबंधित उपाय भी अपनाए जा रहे हैं ताकि नागरिकों की गोपनीयता से कोई समझौता न हो।

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निजता और नागरिक अधिकारों को लेकर उठे सवाल

हालांकि इस कदम का स्वागत पारदर्शिता के दृष्टिकोण से हो रहा है, लेकिन नागरिक संगठनों और डिजिटल अधिकार कार्यकर्ताओं ने इससे संबंधित कुछ आशंकाएं भी जाहिर की हैं। उनका मानना है कि आधार डेटा से जुड़ाव से Privacy को खतरा हो सकता है। इसके अलावा ऐसे लोगों को मतदान से वंचित करने की संभावना है जिनके पास आधार नहीं है या जो इसे लिंक नहीं कर पाते।

डिजिटल बहिष्करण की आशंका भी गहराई

देश के कई दूरदराज़ इलाकों में आज भी लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जुड़ नहीं पाए हैं। ऐसे में आधार लिंकिंग अनिवार्य करने से एक बड़ा वर्ग वोटिंग प्रक्रिया से बाहर हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे पूरी तरह अनिवार्य बनाने से पहले जागरूकता और डिजिटल सशक्तिकरण पर जोर देना ज़रूरी है।

राजनीतिक गलियारों में मिली-जुली प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह कदम नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए चुनौती बन सकता है। वहीं सत्ताधारी पक्ष का कहना है कि यह व्यवस्था चुनावों की शुचिता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। कांग्रेस सहित कई दलों ने इसकी वैधानिकता और संभावित दुरुपयोग पर संसद में चर्चा की मांग की है।

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